इतनी देर लगाते हो
कि आँसू तक सूख जाते हैं।
सुबह शाम में, शाम रात में
बदल जाती है और
आसमान पर तारे छा जाते हैं।
दिन भर चहकती चिड़िया
सो जाती है और
बिछड़े दीवाने कुछ गाते हैं।
आने ना आने की तुम्हारी
गिनती सी गिनते
जाने कब हम भी सो जाते हैं।
इतनी देर लगाते हो
कि आँसू तक सूख जाते हैं।
कुछ देर तक तो हमें भी
इंतज़ार के ये पल
बहुत ही भाते हैं।
आओगे तो क्या नखरे करेंगे
मन-ही-मन में
हम वो दोहराते हैं।
पर बीतते समय के साथ
सिर्फ़ बेचारगी बचती है।
जब आख़िर में आते हो,
नाज़-नख़रे धरे ही रह जाते हैं।
इतनी देर लगाते हो
कि आँसू तक सूख जाते हैं।
Tuesday, March 29, 2005
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