कब लिखोगे?
सुबह यही आया पहला ख़याल,
कैसे बताऊँ फिर क्या हुआ हाल!
कुछ और नहीं थी कर सकती
ख़ुद से ही मैं रही पूछती,
कब लिखोगे?
दिन चढ़ा, कई काम थे ज़रूरी
इस ख़याल से चाही थोड़ी दूरी
सब ठीक था, सब निबट गया,
पर दिल का एक कोना सोचता रहा,
कब लिखोगे?
धुंधलका छाया, शाम गहराई,
डूबते सूरज ने आवाज़ लगाई।
दम भर देख ले नज़ारे फिर मैं चला
सोचा जब दिन ग़ुज़रने का पता चला,
कब लिखोगे?
Thursday, March 03, 2005
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