Wednesday, March 02, 2005

जब हम नहीं होते हैं

जब हम नहीं होते हैं।

इन सपनों से आप खेलते हैं क्या?
छिपा दर्द दिल का झेलते हैं क्या?
कभी बेचैनी में अपने
होश तो नहीं खोते हैं?

जब हम नहीं होते हैं।

दूरियाँ कहीं ये सारी आपको खलती तो नहीं?
मेरी अनकही आह कानों पर पड़ती तो नहीं?
गाते-गाते कभी छिपकर, दिल के
तार तो नहीं रोते हैं?

जब हम नहीं होते हैं।

दिन की चहल-पहल से दूर,
दिल के हाथों हो मजबूर
आँखों में हसरतों के सपने
भरे तो नहीं सोते हैं?

जब हम नहीं होते हैं।

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