Sunday, July 24, 2005

डर नहीं है बिछड़ने का भी ऐ सनम

डर नहीं है बिछड़ने का भी ऐ सनम,
ले भी गया मुझे कोई तो क्या वो पाएगा?
क्या था मेरे पास जो तुम्हें न दे दिया
हार कर वो खुद ही मुझे लौटा जाएगा।

रहे नहीं वो दिन कि हर एक गुलशन में
फूल दिल का खिलने के क़ाबिल होता हो,
छूट गई दुनिया जहाँ मन का उड़ता पंछी
तेज दौड़ने से कभी हासिल होता हो।

आशियाना मिल गया है, मिल गए दाने
निकला बाहर उनसे तो फिर जी न पाएगा।
आब-ए-जन्नत मिल गई है इस दिल को
और अब वो सादा पानी पी न पाएगा।

Wednesday, July 20, 2005

हाँ, कहा तो था तुमने साथी

हाँ, कहा तो था तुमने साथी।

कि मुश्किल होंगी राहें अपनी
फेरना मत निग़ाहें अपनी।
निग़ाहों को समझा लूँ पर दिल का क्या करूँ,
मारती हैं जिसे सज़ाएँ अपनी।

हाँ, कहा तो था तुमने साथी।

कि मूँदनी पड़ेंगी हमें आँखें अपनी
नहीं समझेंगे वो बातें अपनी।
पर दुनिया भी खींचती है क्या करूँ उसका,
कहाँ भेजूँ परेशान रातें अपनी।

हाँ, कहा तो था तुमने साथी।

कि बिना आस के ही चलना पड़ेगा
बेचैनियों में जीना-मरना पड़ेगा।
पर बर्दाश्त नहीं होती बेचैनी, आस नहीं मरती,
कहो कब तक उन्हें कुचलना पड़ेगा?

हाँ, कहा तो था तुमने साथी।

Sunday, July 17, 2005

चाहा है सबने हमें

चाहा है सबने हमें इससे ज़्यादा तो क्या करे कोई
क़िस्मत में ना हो प्यार का मज़ा तो क्या करे कोई।

यों तो बिठा दिया है आसमाँ पर तुमने हमें
हो खुदा का और ही फ़ैसला तो क्या करे कोई।

शिक़ायत क्या करें जान दे दी लोगों ने हमपर
लेने को मेरे दम ही न हो बचा तो क्या करे कोई।

ज़माने ने तो दे ही दी तलवार हाथ में
बेबस मेरा हाथ ना उठा तो क्या करे कोई।

Friday, July 15, 2005

कल रात क्या ऐसा नहीं लगा

कल रात क्या ऐसा नहीं लगा,
कुछ कहना था और नहीं कहा?

नहीं ऐसा कि डरते थे पर
समाँ ही मानो नहीं बँधा।

समझ गए हम इतना क्या कि
कहने को कुछ नहीं बचा?

किस्से पूरी दुनिया के हैं
दासताँ अपनी गई कहाँ?

कुछ पल जो मेरे अपने हैं
सब चीज़ें उनको लें न चुरा।

कल रात क्या ऐसा नहीं लगा,
कुछ कहना था और नहीं कहा?

Sunday, July 10, 2005

अनजान थे हम पर हमें लोग जानते थे

अनजान थे हम पर हमें लोग जानते थे
नादान थे ना समझे पर लोग जानते थे।

चिंगारियो को भले ही पहचान ना पाए हम
भढ़केंगी ही वे कभी ये लोग जानते थे।

पास आए, दूर हुए, खेल समझा किए इसे
पर मिलना ही था हमें सब लोग जानते थे।

दुनिया को चौंका देंगे ये सोचा था हमने
पर सबकुछ हमसे पहले ही लोग जानते थे।

पूछते हैं लोग कि शुरुआत कहाँ हुई

पूछते हैं लोग कि शुरुआत कहाँ हुई
पहली बार उनसे दिल की बात कहाँ हुई।

किस्से जो लिख रखे लोगों ने सदियों से
वारदात उन सी हमारे साथ कहाँ हुई।

आँखे नहीं मिली, होठ नहीं हिले
किस्सा सुनाएँ तुम्हें ऐसी बात कहाँ हुई।

दुनिया डूब चुकी है, नादानियाँ तो देखो
पूछते हैं लोग कि बरसात कहाँ हुई।

Saturday, July 09, 2005

वो याद में खुश थे मेरी, रोए हम उन्हें याद कर

वो याद में खुश थे मेरी, रोए हम उन्हें याद कर
चुप रह दिल मेरे, हँसते हैं सब फ़रियाद पर।

होंगे और वो लोग जो लेते हैं दर्द में मज़ा
रोना हमें तो आ गया खुशियों की ख़ाक पर।

किया जमा बरसों से इतना कुछ कहने को
और ज़बान खुली नहीं एक भी बात पर।

लफ़्ज़ जमा कर लें हम, समाँ कैसे सँजोए
मिट गई स्याही जिससे नाम लिखा हाथ पर।

उम्र भर वो रोशनी ढूँढा किए मेरे लिए
और हम तो मिट गए थे बस एक रात पर।

Tuesday, July 05, 2005

कहाँ से सीखा है सताना?

कहाँ से सीखा है सताना?

यों तो आँसू पर किसी के
खुद भी रोते से दिखते हो।
दर्द बयाँ कर के दुनिया के
रोज़ नई ग़ज़ल लिखते हो।
कैसे फिर मुझको यों तुम
तड़पाते हो ये बतलाना।

कहाँ से सीखा है सताना?

नींद तुम्हें तो आ जाती है,
रातों में सपनों के साथ।
कहीं भी तो होता नहीं
पास मेरे तुम्हारा हाथ।
क्या टोना करते हो लेकिन
काम जिसका मुझको जगाना?

कहाँ से सीखा है सताना?

भूल गए वो मुझको ही

भूल गए वो मुझको ही, यादों को मेरी साथ लिए
धुंधला हो गया चेहरा मेरा, हाथों में जब हाथ लिए।

कब तक मन बहलाए कोई, चंद पलों की बातों से,
उम्र गुज़र गई ऐ गुलशन, उनसे खुलकर बात किए।

समय नहीं गुजरेगा मानों, झरने सब थम जाएँगे,
मौत नहीं आएगी उन बिन, ज़हर कोई क्या ख़ाक पिए।

इजाज़त दी थी क्यों ऐ दिल, आरजुओं को आने की,
नहीं छोड़ती अब वो दामन, कोशिश मेरे लाख किए।

Saturday, July 02, 2005

सब लोग कहते हैं

मुझे कहीं कुछ हो तो गया है, सब लोग कहते हैं।
क़ाबू ख़ुद पे खो तो गया है, सब लोग कहते हैं।

छिपाया तो बहुत हमने पर छिप न सका दुनिया से
कोई कल रात रो तो गया है, सब लोग कहते हैं।

कोई क़त्ल तो हुआ है, रात छींटे खून के यहाँ से
रगड़ कर कोई धो तो गया है, सब लोग कहते हैं।

फूलों की किसे तलाश, काँटों की सेज बिछा कोई
उस पर सर रख सो तो गया है, सब लोग कहते हैं।