हलचल बंद-सी है
अभी मेरे दिल में।
शांति तो नहीं ये
तूफ़ान से पहले की?
धुंधले हैं सपने
खोए मेरे शब्द।
कुछ ज़्यादा बातें तो नहीं
हैं उनसे कहने की?
ये रोज़ की दूरियाँ
और दूरियों की आदत।
होगी भी कभी क़िस्मत
एक साथ रहने की?
उड़ने की इच्छा
पर कुतरे हुए पर।
छूट मिलेगी क्या
दरिया-संग बहने की?
ऐ दिल, मत धड़कना,
आ भी जाएँ वो तो।
स्वागत करना, शांति का
आवरण पहने ही।
Wednesday, March 16, 2005
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