Monday, March 28, 2005

बस यों ही

क्या सुनाऊँ दास्तान अपनी
अब शब्द भी नहीं मिलते।

किसे देखा, क्या सोचा
अब होठ ही नहीं हिलते।

किसने कहा रेगिस्तान में
कभी फूल नहीं खिलते?

हमने देखा है क्षितिज तक जा
धरती को आसमान से मिलते।

देखने भर से पर मिलती नहीं सिफ़त
कि जो देखा हो, वो बयाँ भी करते।

फूल से हलकी, जान से भारी
रखी एक चीज़ है, बस यों ही दिल पे।

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