Wednesday, July 20, 2005

हाँ, कहा तो था तुमने साथी

हाँ, कहा तो था तुमने साथी।

कि मुश्किल होंगी राहें अपनी
फेरना मत निग़ाहें अपनी।
निग़ाहों को समझा लूँ पर दिल का क्या करूँ,
मारती हैं जिसे सज़ाएँ अपनी।

हाँ, कहा तो था तुमने साथी।

कि मूँदनी पड़ेंगी हमें आँखें अपनी
नहीं समझेंगे वो बातें अपनी।
पर दुनिया भी खींचती है क्या करूँ उसका,
कहाँ भेजूँ परेशान रातें अपनी।

हाँ, कहा तो था तुमने साथी।

कि बिना आस के ही चलना पड़ेगा
बेचैनियों में जीना-मरना पड़ेगा।
पर बर्दाश्त नहीं होती बेचैनी, आस नहीं मरती,
कहो कब तक उन्हें कुचलना पड़ेगा?

हाँ, कहा तो था तुमने साथी।

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