Sunday, July 17, 2005

चाहा है सबने हमें

चाहा है सबने हमें इससे ज़्यादा तो क्या करे कोई
क़िस्मत में ना हो प्यार का मज़ा तो क्या करे कोई।

यों तो बिठा दिया है आसमाँ पर तुमने हमें
हो खुदा का और ही फ़ैसला तो क्या करे कोई।

शिक़ायत क्या करें जान दे दी लोगों ने हमपर
लेने को मेरे दम ही न हो बचा तो क्या करे कोई।

ज़माने ने तो दे ही दी तलवार हाथ में
बेबस मेरा हाथ ना उठा तो क्या करे कोई।

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