Wednesday, February 02, 2005

ज़िन्दग़ी मुझसे भागना नहीं

ज़िन्दग़ी मुझसे भागना नहीं!

अबतक बहुत कुछ तूने दिया है,
तेरा मधुर रस मैंने पिया है ।
फिर भी आज मुझे स्वप्न सा लगता है
इस स्वप्न से मुझे जागना नहीं ।

ज़िन्दग़ी मुझसे भागना नहीं!

नहीं चाहिए मुझे गाढ़े गुलाल
पर छीनना न मुझसे हलका रंग लाल ।
एक धीमी मधुर गुनगुन काफी होगी,
ना सुनूँ मैं फाग ना सही ।

ज़िन्दग़ी मुझसे भागना नहीं!

चुपके से आ जाना कोई क्यों जाने,
मैं तो खुश रहूँगी चाहे कोई ना माने ।
बुलबुल न समझे, मंजर न जानें
तू आ जाना चाहे बोले काग ना सखी ।

ज़िन्दग़ी मुझसे भागना नहीं!

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