Sunday, January 30, 2005

जब इस बार

जब इस बार मिलें हम तुम, मैं खुद से ही डर जाऊँ तो?
जड़ हो जाऊँ क़दम अपने मैं आगे ना कर पाऊँ तो?

बढ़कर थाम तो लोगे मुझको, बाहों में भर लोगे क्या?
साँसें रुकने लगें तब भी जीवन मेरा नया कर दोमे क्या?

और कहीं जो टूट मैं जाऊँ, आँसू रुकने पाएँ ना मेरे,
बिना उन्हें हाथों से पोछे, सीने में भर लोगे क्या?

नई-नई सी परिस्थिति में मैं थोड़ा घबराऊँ तो?
बोल नहीं पाऊँ मैं कुछ भी, कुछ कर भी नहीं मैं पाऊँ तो?

झुक भी जाएँ आँखें पर उनकी भाषा पढ़ लोगे क्या?
मेरे मन के आँगन को फिर भी प्रेम से भर दोगे क्या?

दो पल में जीवन जी लूँ सारा ऐसा कुछ कर कर दोगे क्या?
और कर्तव्य बुलाए जब तो, मुझे छोड़ चल दोगे क्या?

अनिवार्य होगा बिछड़ना फिर से, जानकर भी रोक नहीं मैं पाऊँ तो?
बुरा तो नहीं मानोगे यदि एक बार तुम्हारे बाद दो बूँदें मैं बरसाऊँ तो?

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