मैं कल रात नहीं सोई!
दिल तड़प रहा था
तुम्हें पास बुलाने को
आँखें तरस रही थीं
एक झलक बस पाने को ।
व्यथा बड़ी थी, पर तुम्हारी
ख़ातिर ही मैं नहीं रोई ।
मैं कल रात नहीं सोई!
मुड़कर देखने का जी था,
पर फिर भी मैं मुड़ी नहीं ।
थक कर रुक जाने की इच्छा
होने पर भी रुकी नहीं ।
दुखी न होना, दोष न देना,
मैंने बात नहीं खोई ।
मैं कल रात नहीं सोई!
सुबह पूछा किसी ने तो
मैंने बना दिए बहाने,
मेरे दिल की धड़कन का
कोई अर्थ क्योंकर जाने?
जीवन में तुम्हें बसाने की तड़प में,
सच, मेरा हाथ नहीं कोई ।
मैं कल रात नहीं सोई!
Saturday, January 15, 2005
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