Saturday, January 15, 2005

आज अगर तुम यहाँ होते

आज अगर तुम यहाँ होते ।

नई जगह और नए नज़ारों
व्यस्त सड़क और भरे बाज़ारों
में मेरे चलने के अरमाँ
उत्साह न सहसा यों खोते ।

आज अगर तुम यहाँ होते ।

सूनी गलियों, शांत इशारों,
में पनपने वाले मेरे विचारों,
को महसूस बेबसी ना होती
और वे यों अकेले ना रोते ।

आज अगर तुम यहाँ होते ।

लोगों से यों घिरी हुई
चहल-पहल में मिली हुई,
मैं जीवन से भागना नहीं चाहती
इसके बीज अगर हम साथ बोते

आज अगर तुम यहाँ होते ।

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