Saturday, January 15, 2005

अधूरी देन

(एक संग्रहालय [museum] में एक मध्यकालीन अधूरी प्रेम-कहानी की पांडुलिपि देखकर ये कविता मन में आई।)

कौन था रे तू?
क्या व्यथा थी तेरी?
जो यों तूने लिख छोड़ी,
एक प्रेम-कहानी अधूरी।

क्या कुर्बान हो गया था तू
प्रेम या कर्त्तव्य की राह पर?
क्या पूरा कर पाने से पहले ही
मिट चुका था अपनी किसी चाह पर?

क्या तेरा प्रेम एकतरफ़ा था?
क्या दिलो के तार तुम्हारे मिले नहीं?
जो कल्पना के कमल तूने खिलाए थे,
क्या वे दूसरी ओर कभी खिले नहीं?

या फ़िर थी कोई मजबूरी
जिसकी वज़ह से तुम्हारा प्रेम
आ नहीं पाया विश्व के सामने, पर
दे गया इतिहास को ये अधूरी देन।

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