किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।
कह ना पाई जो जुबानी लिखूँगी ।
जब लमहे ग़ुज़ारे तनहा बैठै-बैठे,
तब आई यादों की निशानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।
राजा था सपनों में रानी थी बैठी,
खो गए कहाँ राजा रानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।
बाहर था सूखा और हवा गर्म थी,
आँखों से बरसा जो पानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।
नज़ारों को तकते-ही-तकते वो कैसे
खिंच गई थी चादर धानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।
हसरतें दबी ऐसी, जो फिर ना निकलीं
दुनिया ने कैसे ना जानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।
सुलझे दिमाग़ और मजबूत दिल ने
क्यों तक़दीर से हार मानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।
Thursday, February 03, 2005
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