Friday, February 25, 2005

आया जो पहला ख़त उनका

आया जो पहला ख़त उनका।

ज़मीं से उठाकर मुझे
आसमां पर बिठा गया।
थोड़ा जो बचा था मेरे पास
वो चैन भी चुरा गया।
ये बात उन्हें बता देना
पर चैन चुराना यों मत उनका
आया जो पहला ख़त उनका।

भीड़ में बैठे ही बैठे
जो कहीं खो गई मैं।
बिना किसी वज़ह के
पागल सी जो हो गई मैं।
तो अजूबा क्या था इसमें
दोष इसे कहना मत मन का।
आया जो पहला ख़त उनका।

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