सच ही कहा था उन्होंने
आसान नहीं होतीं
मोहब्बत की ये राहें।
पागलपन नहीं रुकता
लाख किसी के चाहे।
सम्भाले नहीं सम्भलता
बेचैन होता मन।
दिमाग़ की नहीं सुनती
तेज़ होती धड़कन।
समय के साथ नहीं भरता
घाव कभी दिल का।
उलटा हर पल इसे
दर्द नया है मिलता।
बेचैनियाँ भी दिल कीं
एक हद के बाद।
लफ़्ज़ों में हो ना पातीं
ज़ाहिर हैं साफ़-साफ़।
आँखें ही नहीं खुलतीं
हों सामने वो ना ग़र।
पर नींद नहीं आती
भूले-से भी पलकों पर।
फिर भी रोककर के
अपने पागलपन को,
रौंद कर चिल्लाती
हुई एक धड़कन को,
दबाकर सिसकियों को
बेचैनियों को मार,
सोख आँसुओं को
कर के दिलपर वार,
खोलनी पड़ती हैं
सुरज के संग आँखें,
चलना पड़ता है दिनभर
ज़िम्मेदारियों को लादे।
सुन ना पाए कोई
भूल से भी आहें।
आसान नहीं होतीं
मोहब्बत की ये राहें।
सच ही कहा था उन्होंने।
Wednesday, June 15, 2005
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