हवा चल तो रही है क्यों मेरे पास आती नहीं
हज़ार चीज़े तो हैं क्यों उनकी याद जाती नहीं।
आयी बारिश दुनिया ने की ख़ुशामदीद
गम मेरा ये क्या ये उन्हें तड़पाती नहीं।
कभी मैंने ही सजाई थी अपने हाथों से जो
क्या हुआ कि वो महफ़िल मुझे भाती नहीं?
कितनों की लगी है क़तार बता दे ऐ ख़ुदा,
दरबार में तेरे क्यों मेरी बारी आती नहीं।
Wednesday, June 29, 2005
Tuesday, June 28, 2005
सुहाना मौसम आ गया तुम आ सकते नहीं
सुहाना मौसम आ गया तुम आ सकते नहीं
और तुम बिन ये नज़ारे हमें भा सकते नहीं।
परिंदे भी बहलाते नहीं हमें, कहते हैं ये -
ये रोती शकल देख हम गा सकते नहीं।
साथियों ने तौबा कर ली साथ मेरे आने से -
रहती हो जाने कहाँ हम साथ आ सकते नहीं।
छोड़ दिया मेरे हाथों ने मेरा साथ, कहा -
छूना है आसमान, वहाँ हम जा सकते नहीं।
ख़्वाबों को मेरे पड़ी नसीहतों की मार -
छोड़ दे, उन्हे तेरे नसीब पा सकते नहीं।
और तुम बिन ये नज़ारे हमें भा सकते नहीं।
परिंदे भी बहलाते नहीं हमें, कहते हैं ये -
ये रोती शकल देख हम गा सकते नहीं।
साथियों ने तौबा कर ली साथ मेरे आने से -
रहती हो जाने कहाँ हम साथ आ सकते नहीं।
छोड़ दिया मेरे हाथों ने मेरा साथ, कहा -
छूना है आसमान, वहाँ हम जा सकते नहीं।
ख़्वाबों को मेरे पड़ी नसीहतों की मार -
छोड़ दे, उन्हे तेरे नसीब पा सकते नहीं।
Monday, June 27, 2005
मुझे चाँद ना कहा करो
मुझे चाँद ना कहा करो महबूब मेरे।
क़िस्मत में लिखा है उसकी
बस अकेले यों ही रहना।
तारे तमाशा देखते दूर से, उसे
दर्द अपना खुद ही है सहना।
क्या करे अगर कभी उदासियाँ उसे घेरें?
मुझे चाँद ना कहा करो महबूब मेरे।
उसकी चाँदनी में यों तो
ठंढक दुनिया सारी पाती है।
पर उसकी ठंढी आहें कहाँ
किसी के दिल को तड़पाती हैं?
ले कहाँ पाया कभी वो प्रियतम के संग फेरे।
मुझे चाँद ना कहा करो महबूब मेरे।
क़िस्मत में लिखा है उसकी
बस अकेले यों ही रहना।
तारे तमाशा देखते दूर से, उसे
दर्द अपना खुद ही है सहना।
क्या करे अगर कभी उदासियाँ उसे घेरें?
मुझे चाँद ना कहा करो महबूब मेरे।
उसकी चाँदनी में यों तो
ठंढक दुनिया सारी पाती है।
पर उसकी ठंढी आहें कहाँ
किसी के दिल को तड़पाती हैं?
ले कहाँ पाया कभी वो प्रियतम के संग फेरे।
मुझे चाँद ना कहा करो महबूब मेरे।
Thursday, June 23, 2005
हम दो साथी आशा से हीन
हम दो साथी आशा से हीन।
मंज़िल अपनी हो सकती नहीं
फिर भी चाहत है बढ़ने की।
मंज़िल ही तो छिन सकती है
रास्ता कौन लेगा छीन?
हम दो साथी आशा से हीन।
इज़ाज़त नहीं है रुकने की,
बाँहों में तुमको भरने की।
बस हाथ पकड़ चलते हैं
जब तक साँसें न हो जाएँ क्षीण।
हम दो साथी आशा से हीन।
मंज़िल अपनी हो सकती नहीं
फिर भी चाहत है बढ़ने की।
मंज़िल ही तो छिन सकती है
रास्ता कौन लेगा छीन?
हम दो साथी आशा से हीन।
इज़ाज़त नहीं है रुकने की,
बाँहों में तुमको भरने की।
बस हाथ पकड़ चलते हैं
जब तक साँसें न हो जाएँ क्षीण।
हम दो साथी आशा से हीन।
Wednesday, June 15, 2005
सच ही कहा था उन्होंने
सच ही कहा था उन्होंने
आसान नहीं होतीं
मोहब्बत की ये राहें।
पागलपन नहीं रुकता
लाख किसी के चाहे।
सम्भाले नहीं सम्भलता
बेचैन होता मन।
दिमाग़ की नहीं सुनती
तेज़ होती धड़कन।
समय के साथ नहीं भरता
घाव कभी दिल का।
उलटा हर पल इसे
दर्द नया है मिलता।
बेचैनियाँ भी दिल कीं
एक हद के बाद।
लफ़्ज़ों में हो ना पातीं
ज़ाहिर हैं साफ़-साफ़।
आँखें ही नहीं खुलतीं
हों सामने वो ना ग़र।
पर नींद नहीं आती
भूले-से भी पलकों पर।
फिर भी रोककर के
अपने पागलपन को,
रौंद कर चिल्लाती
हुई एक धड़कन को,
दबाकर सिसकियों को
बेचैनियों को मार,
सोख आँसुओं को
कर के दिलपर वार,
खोलनी पड़ती हैं
सुरज के संग आँखें,
चलना पड़ता है दिनभर
ज़िम्मेदारियों को लादे।
सुन ना पाए कोई
भूल से भी आहें।
आसान नहीं होतीं
मोहब्बत की ये राहें।
सच ही कहा था उन्होंने।
आसान नहीं होतीं
मोहब्बत की ये राहें।
पागलपन नहीं रुकता
लाख किसी के चाहे।
सम्भाले नहीं सम्भलता
बेचैन होता मन।
दिमाग़ की नहीं सुनती
तेज़ होती धड़कन।
समय के साथ नहीं भरता
घाव कभी दिल का।
उलटा हर पल इसे
दर्द नया है मिलता।
बेचैनियाँ भी दिल कीं
एक हद के बाद।
लफ़्ज़ों में हो ना पातीं
ज़ाहिर हैं साफ़-साफ़।
आँखें ही नहीं खुलतीं
हों सामने वो ना ग़र।
पर नींद नहीं आती
भूले-से भी पलकों पर।
फिर भी रोककर के
अपने पागलपन को,
रौंद कर चिल्लाती
हुई एक धड़कन को,
दबाकर सिसकियों को
बेचैनियों को मार,
सोख आँसुओं को
कर के दिलपर वार,
खोलनी पड़ती हैं
सुरज के संग आँखें,
चलना पड़ता है दिनभर
ज़िम्मेदारियों को लादे।
सुन ना पाए कोई
भूल से भी आहें।
आसान नहीं होतीं
मोहब्बत की ये राहें।
सच ही कहा था उन्होंने।
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