कभी जब पास हो कर भी दूरियां मुझसे लगें बडने,
मेरा साथ प्यास बुझाने की बजाये खुद ही लगे जलने ,
तब याद कर लेना आज की दूरियों का बेपनाह दर्द ।
शायद तब साथ मेरा फ़िर से भाने लगे,
और नज़दीक हम दोनों फ़िर से आने लगें ।
कभी अपनी ज़िंदगी में जब ऊब सी आने लगे,
जब रोज़ की जाने वाली बातें उकताने लगें,
तब एक बार पलट लेना आज के सपनों की किताब ।
शायद इन मे से कुछ करने को हम फ़िर ललचाने लगें,
और ये उत्सुकता फ़िर से जीवन में आने लगे ।
काल यदि तुमसे हमको कभी यों ही ले जायें छीन,
और सुषमा जीवन की सारी लगने लगे मानो हीन,
दूरियों मे पनपे प्यार की याद तब तुम कर लेना ।
शायद निराशा का भाव तब मन से तुम्हारे जाने लगे,
और क्षीण शरीर भी जोर से जवां दिलों का गीत गाने लगे ।
Friday, April 22, 2005
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