Sunday, April 17, 2005

यूं दूरियां मिटती जाती हैं

यूं दूरियां मिटती जाती हैं ।

डर था आंख मिलाने मे भी,
हिचक हाथ बडाने मे भी ।
कब मिली नज़र, कब थमा हाथ,
बात याद नही अब आती है ।

यूं दूरियां मिटती जाती हैं ।

कब कंधे पर रक्खा सर,
और आंखों मे कई सपने भर,
जिन बांहों ने कसा मुझे,
कितनी वो अभी भाती हैं।

यूं दूरियां मिटती जाती हैं ।

आम सी बात कहने मे भी,
हिचक भला कैसी थी होती?
कैसे दिल के दर्द, भय और
खुशियां भी यूं खुल जाती हैं?

यूं दूरियां मिटती जाती हैं ।

पास रह भी दूर थे वो
ख्वाब वो मजबूर थे जो !
दूरियों से भी अब कैसे,
तान उनकी आ जाती है?

यूं दूरियां मिटती जाती हैं ।

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