यूं दूरियां मिटती जाती हैं ।
डर था आंख मिलाने मे भी,
हिचक हाथ बडाने मे भी ।
कब मिली नज़र, कब थमा हाथ,
बात याद नही अब आती है ।
यूं दूरियां मिटती जाती हैं ।
कब कंधे पर रक्खा सर,
और आंखों मे कई सपने भर,
जिन बांहों ने कसा मुझे,
कितनी वो अभी भाती हैं।
यूं दूरियां मिटती जाती हैं ।
आम सी बात कहने मे भी,
हिचक भला कैसी थी होती?
कैसे दिल के दर्द, भय और
खुशियां भी यूं खुल जाती हैं?
यूं दूरियां मिटती जाती हैं ।
पास रह भी दूर थे वो
ख्वाब वो मजबूर थे जो !
दूरियों से भी अब कैसे,
तान उनकी आ जाती है?
यूं दूरियां मिटती जाती हैं ।
Sunday, April 17, 2005
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