Saturday, July 29, 2006

एक ही हश्र


हर लम्हा
जो मैंने चुराया था
वक़्त के चंगुल से,
दुनिया के हाथों से,
हमारे लिए,
उन सबका का
एक ही हश्र हुआ है।


सब-के-सब
बस याद बन कर रह गए हैं।

2 comments:

आलोक said...

बस याद बन कर रह गए हैं

आलोक said...

वाह