ढूँढ़ा हमने दिन-रात एक कर
अपने लिए एक आशियाना।
सजाया उसे, झगड़े हम
परदों के रंग पर, रसोई के बर्तनों पर।
और अब जब बना है वो तो तुम चले जाओगे।
नहीं चढ़ पा रहे थे पहाड़,
नहीं उतर पा रहे थे नदी में।
सामना किया अक्षम शरीर का,
और अब जब साथ चल सकती हूँ तुम्हारे
तो सब कुछ छोड़ कर तुम चले जाओगे।
एक छोटी-सी गाड़ी जो हमें
दूर-दूर ले जा सके।
सपने में जो देखी जगहें
वहाँ तक पहुँचा सके।
मिली जब वो है तो भूल सब तुम चले जाओगे।
भागते रहे, दौड़ते रहे,
ज़िन्दग़ी को पकड़ने को,
ओर अब जब मिले हैं कुछ पल
कि जी सकें उसे
तो छोड़ इसको ही अब तुम चले जाओगे।
2 comments:
वाह बहुत सुंदर पंक्तियॉ हैं।
छोड़ने की बात जो कहे,उसे काफ़िर समझो
और छोड़ ही गया तोो उसे मुस्साफिर समझो
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