क्यों उदास हुए महबूब मेरे?
कुछ ठोकरें लगीं, थोड़े घुटने छिले,
माना दुनिया से हैं शिकवे-ग़िले,
पर बदलेगी थोड़ी दुनिया
बदलेंगे थोड़े हम
फिर क्यों भला रहे हमें उदासियाँ घेरे?
क्यों उदास हुए महबूब मेरे?
कुछ तो बचपना था, कुछ समझदारी थी
कुछ तो समझ ख़ुदग़र्ज़ी से हारी थी,
पर भलाई करने की
कोशिश भी तो थी,
फिर क्यों भला रहे हमें उदासियाँ घेरे?
क्यों उदास हुए महबूब मेरे?
Friday, October 07, 2005
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1 comment:
बहुत सुन्दर, अच्छी कविता बन पड़ी है। लगातार लिखा करिये।
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