Thursday, August 25, 2005

उस दिन समझूँगी प्यार किया

अपने सच के आगे तुम्हारे
सच को अपना लूँगी जिस दिन
उस दिन समझूँगी प्यार किया।

इंतज़ार कर पाऊँ जिस दिन
शिकायत के एक लफ़्ज़ बिन
उस दिन समझूँगी प्यार किया।

छोड़ दूँ तड़पना जिस दिन से मैं
गलतियाँ तुम्हारी गिन-गिन
उस दिन समझूँगी प्यार किया।

Thursday, August 18, 2005

कुछ हर बार बदल जाता है

कुछ हर बार बदल जाता है।

बरसों का है इंतज़ार और
पल भर की ही है बहार
पर उस पल भर में ही कैसे
परदा एक और खुल जाता है।
कुछ हर बार बदल जाता है।

लगता है कि बहुत हुआ
कुछ करने को अब नहीं बचा
पर जब भी मिलते हो फिर से
बंधन एक और खुल जाता है।
कुछ हर बार बदल जाता है।

पहली बार पास आए थे
कैसे हम तब घबराए थे
जब भी अब वापस आते हो
क़दम एक और बढ़ जाता है।
कुछ हर बार बदल जाता है।

Wednesday, August 17, 2005

इतनी खुश थी मैं

कितनी खुश हूँ इसका अहसास ही नहीं हुआ
इतनी खुश थी मैं।
याद दिलाया तुमने पर विश्वास ही नहीं हुआ
इतनी खुश थी मैं।

बच्चों के से खिलवाड़ मुझे आ रहे थे रास
इतनी खुश थी मैं।
बेमतलब की बातें भी लग रहीं थीं ख़ास
इतनी खुश थी मैं।

बंद कमरा भी खुला आसमान बन गया था
इतनी खुश थी मैं।
तुम्हारी आँखों से ही पूरा जहान बन गया था
इतनी खुश थी मैं।

Friday, August 12, 2005

क्यों चुप हूँ मैं

पूछा न करो मुझसे कि क्यों चुप हूँ मैं।

कभी सुना है फूलों को बोलते
देखा है तारों को मुँह खोलते?
रंग और रोशनी जो छाई हुई है
बिना कहे सुने ही कितनी खुश हूँ मैं।

पूछा न करो मुझसे कि क्यों चुप हूँ मैं।

Monday, August 01, 2005

कौन सा है आसमान जिसमें उड़ रही हूँ मैं

कौन सा है आसमान जिसमें उड़ रही हूँ मैं
कौन डगर जिससे कि पीछे ना मुड़ रही हूँ मैं।

गीत बन के बिखरे जो शब्द हैं हवाओं में
लाया मेरे पास कौन कि बन सुर रही हूँ मैं।

प्रिय की बाँहों में कहीं वसंत-सा कुछ है सही
ग्रीष्म की तपिश में बन फूल झड़ रही हूँ में।

सावन ने उनकी आँखों में घर शायद कर लिया
तभी तो यों घनघोर घटाओं-सी उमड़ रही हूँ मैं।