क्यों बातें कर के जी नहीं भरता?
सुना दीं सारी ख़बरें जहान की
सुन लीं बाकी ख़बरे जहान की
क्यों फिर भी ये पूरा नहीं पड़ता?
क्यों बातें कर के जी नहीं भरता?
बता दिया जितना बता सकती थी
लफ़्ज़ों में जो बात समा सकती थी
क्यों फिर भी चुप रहने का मन नहीं करता?
क्यों बातें कर के जी नहीं भरता?
लगता तो नहीं कुछ और कह सकते हो
क्या चुप्पी फ़िर भी सह सकते हो?
मेरा तो सुन-सुन कर दिल नहीं भरता।
क्यों बातें कर के जी नहीं भरता?
6 comments:
बढ़िया है. लिखते रहें.
I dont know what kept u from writing... but u have a certain fan in me..... but u r so enigmatic that chances of any communication die even before they are born.....
Kaafi accha likhti hain aap. 2006 mein kabhi padhi thi pehli baar koi kavita aapki, tabse aapki blog ki link saved hai. accha hai ki aap firse kuch na kuch likh rahi hain, padhkar accha lagta hai.
ur poems really depict the touch of heart. Many write from mind, but u write from heart.
Shubhankar
Keep Talking!!
Cheers!!
Bahut sundar.
Albert Einstein Quotes , Love Quotes for Him
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