Saturday, July 29, 2006

कौन सा गीत


कौन-सा गीत लिखूँ कहो मैं
जो विरह की अमर गाथा हो
सब विरहियों को दे चैन यों
कि स्वीकार लूँ मैं इस विरह को!


बहाऊँ कैसे वह आँसू मैं
बुझाए वो तपन इतनों की
जिससे सार्थक लगे टूटनी
दुनिया अपने भी स्वप्नों की।


क्या उपकार करूँ यादों से
और किसका करूँ बताओ
कि हर चीज़ मेरी अपनी थी
कह दूँ उनसे याद बन जाओ।



एक ही हश्र


हर लम्हा
जो मैंने चुराया था
वक़्त के चंगुल से,
दुनिया के हाथों से,
हमारे लिए,
उन सबका का
एक ही हश्र हुआ है।


सब-के-सब
बस याद बन कर रह गए हैं।