अकेलापन अब सताने लगा है,
आ जाओ ग़म जाँ खाने लगा है।
काटे बरस इतने कैसे जाने मैंने
रहा-सहा साहस अब जाने लगा है।
थक गए कंधे, नीरस सफ़र है,
हमदम को दिल अब बुलाने लगा है।
हाथों में डाले चलते हैं जो हाथ अब,
दिल उनसा रहने को छटपटाने लगा है।
Friday, April 04, 2008
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