Wednesday, May 11, 2005

रूठा ना करो

रूठा ना करो इन सवालों पर,
पागल दिल के बेचैन ख़यालों पर।

जो एक बार तुमसे पूछा,
सौ बार पहले ख़ुद से पूछा।
तुमसे पूछ कर मैंनें
बस मरहम तुम्हारे साथ का
लगाया दिल के छालों पर।
रूठा ना करो इन सवालों पर।

Sunday, May 01, 2005

समर्पण

लिख पाती ऐसा गीत कोई
सब मन की बातें कह जाता।
और फिर उनसे कहने को
और नहीं कुछ रह जाता।

शब्द कुछ ऐसे होते
दिल निकाल कर रख सकते।
एक निग़ाह ऐसी जिसमें
सारा जी हम भर सकते।

होता आलिंगन कोई ऐसा,
आग सारी बुझ जाती।
कोई चुम्बन होता जिसमें
सारी साँसें चुक जाती।

ऐसा कोई मिलन भी होता,
पल भर में जो हो जाता,
और तड़प, इच्छाएँ बाकी
के जीवन की धो जाता।

कुछ होता मिल जाता उनको
मेरे मन का पूरा दर्पण।
संस्कार कोई ऐसा कि
हो जाता सम्पूर्ण समर्पण।