Thursday, February 03, 2005

किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी

किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।
कह ना पाई जो जुबानी लिखूँगी ।

जब लमहे ग़ुज़ारे तनहा बैठै-बैठे,
तब आई यादों की निशानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।

राजा था सपनों में रानी थी बैठी,
खो गए कहाँ राजा रानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।

बाहर था सूखा और हवा गर्म थी,
आँखों से बरसा जो पानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।

नज़ारों को तकते-ही-तकते वो कैसे
खिंच गई थी चादर धानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।

हसरतें दबी ऐसी, जो फिर ना निकलीं
दुनिया ने कैसे ना जानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।

सुलझे दिमाग़ और मजबूत दिल ने
क्यों तक़दीर से हार मानी लिखूँगी ।
किसी दिन मैं एक कहानी लिखूँगी ।

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