Saturday, March 15, 2008

क्या वो आज हमें पुकारेंगे नहीं?

क्या वो आज हमें पुकारेंगे नहीं?
हमने तो बढ़ाए क़दम, वो अब
क्या दूरियों को नकारेंगे नहीं?


क्यों आदत सी हो गई है उनकी हमें,
कभी जो रूठ कर चले गए, क्या हम
ज़िंदग़ी उनके बिना गुज़ारेंगे नहीं?


इस अंधेरी रात में, सूनी-सी राह में
कहीं गिर जो पड़े फिसल कर हम
क्या वो हमें आकर सँभालेंगे नहीं?

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